Wednesday, March 20, 2013

{ ५०८ } {March 2013}





सहमी है मनुजता धमाकों और दँगों में
दहशत का रँग चटख है विविध रँगों में
साँसें ठहर गईं हर शख्स सहमा हुआ है
ज़िन्दगी उलझ कर रह गई है जँगों में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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