Saturday, July 28, 2012

{ ३०४ } {July 2012}





बस प्यास ही प्यास है जमाने में
हाय एक बदली कहाँ-कहाँ बरसे
घट को क्या पता कौन छलकाये
और कौन सिर्फ दो घूँट को तरसे||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, July 18, 2012

{ ३०३ } {July 2012}




आप तनहाइयों में याद आये
करीब आ गये अतीत के साये
आप की याद जैसे मन्दिर में
कोई जोगन सितार पर गाये||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३०२ } {July 2012}





मंचों पर बैठ कर ही कुछ लोग
साहित्य की सेवा किया करते हैं
मैं भोग हुआ यथार्थ लिखता हूँ
जिससे सुख-दुःख दर्द झरते है||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ३०१ } {July 2012}





मालियों की हवस से डर जायें
आँधियों में बिखर-बिखर जायें
पूछता हूँ इस चमन के माली से
फूल जिन्दा रहें या कि मर जायें||

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल