Friday, October 28, 2022

{९७८ }





जिनको हमने पूजा, वो अपना आराध्य हो गया
साधना से जो मिला, वो अपना साध्य हो गया
रोली, चन्दन, गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य चढ़ाया
रखा समर्पण भाव, वो वर देने को बाध्य हो गया। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





काट दी सुहानी ऋतुओं की गरदने भागते हुए लम्हों ने 
रूमानी जिन्दगी की चौकड़ियाँ दहशत में डूबी रात हुई। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 






दिन भी लगते काले-काले 
सहमे-सहमे खड़े उजाले 
रातें जगती हैं डरी-डरी सी 
भोरें उगती अँधियारा पाले। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Wednesday, October 26, 2022

{९७७}





शहर की भीड़ में खो गया हूँ 
इक सुनहरा ख्वाब हो गया हूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 






दरिया तो चाहती है कि बुझा दे सबकी प्यास 
मगर कोई प्यासा पास उसके आए तो सही। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 







तेरे सिवा कोई और रँग खुशनजर ही नहीं 
तेरी तबस्सुम तुझसे नज़र हटाने नहीं देती। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 








दिल तो चाहता है सारी उम्र मैं उसको ही पढ़ूँ 
यादों  के  फलक पे जो  अफ़साना  लिखा है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 








सुनो ! रुको जरा, मुझे वहाँ कहाँ खोजते हो 
मैं स्वयं की तलाश में स्वयं में गुम हो गया हूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



Sunday, October 23, 2022

{९७६ }





तेरी तिरछी निगाहों का निशाना गजब का 
लगा इश्क का खंजर सीधे दिल में जा कर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 








ये  मैखाना  ही  वो  जगह  है  यारों 
जहाँ सूकूँ के हजार पल मयस्सर हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 









तलाशे-जीस्त कहाँ ले के आ गई रब ही जाने 
ख्वाहिश थी कि फकत ज़िंदगी को जी जाएं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Friday, October 21, 2022

{९७५ }





बहुत जी लिया जीने के खातिर 
अब जरा मरने के लिए जी लूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९७४ }





ये कैसी अगन लगी दिल में प्यार की 
जो बुझाए न बुझे औ' मिटाए न मिटे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Thursday, October 20, 2022

{९७३ }





ये सोंच कर जाता नहीं मयखाने के जानिब 
आ जाएंगी सामने, साकी की नशीली आँखें। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९७२ }






खुद को कुर्बान करते, वतन के काम आते हैं 
वतन की आबरू, वतन की शान कहलाते हैं 
तिरंगे मे लिपटे, पर खुशी का गान गाते हैं 
आओ भारतवासियों, इस खुशी की वेला पर 
इस दिवाली एक दिया शहीदों के नाम जलाते हैं।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९७१ }





ये ज़िन्दगी शतरंज की बिसात है 
जहाँ जीत के साथ लिखी मात है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Wednesday, October 19, 2022

{९७०}






जब टूट गईं हों पतवारें सारी 
तब कश्ती कैसे दरिया पार करे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Tuesday, October 18, 2022

{९६९ }





वो खफा हो गये बस इसी बात पर 
सामने उनके क्यूँ आईना रख दिया। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Saturday, October 15, 2022

{९६८ }





होंठों पर चिपकी हुई है खोखली हँसी 
पर दिल का हाल हुआ बहुत बेहाल है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Friday, October 14, 2022

{९६७}





पत्थर समझ कर पाँव की ठोकर पर रखने वालों 
अफ़सोस तुम्हारी आँखों ने कभी परखा नहीं मुझे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Thursday, October 13, 2022

{९६६ }





ये दिल, ये जान, ये ज़ज़्बात और ये तनहाई 
ये अपनी दौलत है बोलो किसके नाम करूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९६५}





जो कहानी कागज पर लिखी न जा सकी 
हम उस फ़साने को दीदाए-नम में पालते हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९६४}





है मकाँ का जंगल पर कोई घर नहीं 
सर पे चढ़ी धूप पर कोई शजर नहीं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९६३ }





समय की चाल पर बिछी ज़िन्दगी की बाजी 
देखना है  कि अब शह होगी या फ़िर मात। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९६२ }





तमन्ना है कि कोई मिल जाए इस टूटे दिल को 
जिसकी साँसों की महक से फिज़ा महक जाए। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Tuesday, October 11, 2022

{९६१ }





न हो हासिल शराब जब तक तेरी आँखों की 
तब तक मए-सागर में डूबना उतराना क्या। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Sunday, October 9, 2022

{९६० }





सच बता कातिल, तुझे है क्या प्यार मुझसे 
या कि चंद रोज का हँसना मुसकुराना है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Friday, October 7, 2022

{९५९}






अपने दिल के दरीचों को जरा बन्द कर लो 
मेरे सिवा कहीं हवा भी आकर तुझे छू न ले। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Thursday, October 6, 2022

{९५८ }





मेरा हमसफ़र भी बाकायदा रहा 
वो मेरे गमों से भी बना जुदा रहा 
इस दोस्ती को भी क्या दोस्ती कहें 
वो साथ रहकर भी अलहदा रहा।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

{९५७ }





बड़ा अजीब शख्स है अजीब फ़ितरत उसकी 
गुलों को मसलता और खारों पे जाँ लुटाता है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, October 3, 2022

{९५६ }






ज़ख्म खुद अपनी सारी कहानी कह रहे हैं 
तुमको क्या बतायें हम क्या दर्द सह रहे हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Sunday, October 2, 2022

{९५५}





उदासियाँ ही उदासियाँ हर सिम्त हैं छाईं
उदासियों से कोई रात खाली नहीं जाती। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Saturday, October 1, 2022

{९५४}





वक्त जब बदला अपनों ने ही ठोकर मारकर 
कह दिया अब मील के पत्थर पुराने हो गए। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल