जिनको हमने पूजा, वो अपना आराध्य हो गया
साधना से जो मिला, वो अपना साध्य हो गया
रोली, चन्दन, गन्ध, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य चढ़ाया
रखा समर्पण भाव, वो वर देने को बाध्य हो गया।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
काट दी सुहानी ऋतुओं की गरदने भागते हुए लम्हों ने
रूमानी जिन्दगी की चौकड़ियाँ दहशत में डूबी रात हुई।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दिन भी लगते काले-काले
सहमे-सहमे खड़े उजाले
रातें जगती हैं डरी-डरी सी
भोरें उगती अँधियारा पाले।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल