Sunday, October 26, 2014

{ ८२१ } {Oct 2014}





सबको सबके सामने करती बेनकाब
ज़िन्दगी पर मौत की ऐसी उधारी है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८२० } {Oct 2014}





होठों पर चिपकी हुई है खोखली हँसी
पर दिल का हाल हुआ बहुत बेहाल है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१९ } {Oct 2014}





किस्म-किस्म के रंगों में देखा है तुमको
कभी शोला हो तुम तो कभी शबनम भी।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, October 25, 2014

{ ८१८ } {Oct 2014}





ये. सफ़र. ही. सफ़र. की मँजिल. है
चंद कदमों का हिसाब क्या करना।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१७ } {Oct 2014}






मैं चाहूँगा तुझे सदा तू चाहे वफ़ा का सिला न दे
प्यार गुनाह नहीं, बे-गुनाही की मुझे सजा न दे
मेरे दिल के दर्द को सुन मेरे आँसुओं को तो देख
दिल कब का मर चुका अब रूह को कजा न दे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१६ } {Oct 2014}






जब पतवारें टूट गयी हों सारी
तब कश्ती दरिया कैसे पार करे।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१५ } {Oct 2014}





छलकने न दिया अपने सब्र का प्याला
ये सब्र ही तो मेरा असल इम्तिहान है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१४ } {Oct 2014}


दर-बदर ही रहे कोई अपना नहीं
वीरान आँखों मे कोई सपना नहीं
कुछ एहसास आँखों में जगा करते
पर दुनिया से कोई उरहना नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८१३ } {Oct 2014}






मेरी पीड़ा को किसने जाना-माना-पहचाना है
जमाने से हृदय में उद्वेग उठता थमता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 24, 2014

{ ८१२ } {Oct 2014}





ये दिल, ये जान, ये जज़्बात और ये तनहाई
यही अपनी दौलत है बोलो किसके नाम करूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८११ } {Oct 2014}








आँखों आँखों में ही मैंने रात गुजारी है
किस कयामत की ज़ुल्मात गुजारी है
दिन का सूरज झुलसाये देता है बदन
लड़खड़ाती आस में हयात गुजारी है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

ज़ुल्मात -घोर अँधकार

{ ८१० } {Oct 2014}






तमन्ना है कि कोई मिल जाये इस टूटे दिल को
जिसकी साँसों की खुश्बू से फ़िज़ा महक जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०९ } {Oct 2014}






न हो हासिल शराब जब तक तेरी आँखों की
तब तक मए-सागर में डूबना-उतराना क्या।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 10, 2014

{ ८०८ } {Oct 2014}





ना-मुनासिब था उनसे मिलना कल
आँख वीरान थी और दिल था बोझल
आज फ़िर से उसे ही ढ़ूँढ़ने निकला हूँ
भीड़ में खुद ही न खो जाऊँ मैं पागल।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०७ } {Oct 2014}






ये पूनम की चाँदनी से नहाई रातें, ये टिमटिमाते हुए सितारे
उसपे नागिन सी लहराती तेरी ज़ुल्फ़े मेरा चैन लिये जाती है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०६ } {Oct 2014}






तूफ़ान से लड़ सकें, अब वो नर नहीं हैं
है परवाज़ की कसक लेकिन पर नहीं हैं
एक हैं राम, सैकड़ों रावण से कैसे लड़ें
अँधियारों को उजालों से जब डर नहीं है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०५ } {Sept 2014}





ज़िंदगी में गम मिले मुकद्दर से ज्यादा
फ़ूल चुभे हैं दिल में नश्तर से ज्यादा
ढ़ोते रहे बोझ खामोशी का जीस्त भर
घाव दे रहे हैं रिश्ते खंजर से ज्यादा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०४ } {Sept 2014}






वक्त ने ही गम दिया है और वक्त ही मरहम बनेगा
फ़िर गिले-शिकवों में क्यों वक्त जाया किया जाये।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Wednesday, October 8, 2014

{ ८०३ } {Sept 2014}





अब तो शाम घिर आई आँखें भी धुँधला गईं
सितमगर और कब तक मैं तेरा रास्ता देखूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०२ } {Sept 2014}





दिन बीता अभाव में रात बीती तनाव में
कट रहे दिन जैसे धूप जल रही छाँव में
रिसते ज़ख्म हम जा कर किसे दिखायें
जब जहर भरा हो इंसान के स्वभाव में।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०१ } {Sept 2014}





वीरानियों के इश्क में दिल इतना रो चुका
कि शहनाइयों की गूँज अब भाती नहीं है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ८०० } {Sept 2014}





बिखरती शाम उलझे गेसुओं को सँवारा जाये
चिलमन से झाँकती हुई आँख को निहारा जाये
तनहाइयों के सिवा अपने पास कुछ और नहीं
बिछी है चौसर आखिरी बाजी को निखारा जाये।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९९ } {Sept 2014}





बेचैन ज़िन्दगी को कहीं मिलता नहीं सुकून
पर ज़िन्दगी से मुझे कोई शिकायत भी नहीं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९८ } {Sept 2014}





ख्वाबों से पु्रअश्क ये रातें ज़ख्म हरा ही करतीं हैं
शायद इसी लिये इन ख्वाबों में ही जीना चाहता हूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९७ } {Sept 2014}





जैसे - तैसे कट जाती है रात की खामोशी
बड़ा जानलेवा होता है मरघट का सन्नाटा।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९६ } {Sept 2014}






इसी तरह तुम अगर मुझे चाहते रहे
मेरी तनहाइयाँ मुझे आजाद कर देंगीं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Monday, October 6, 2014

{ ७९५ } {Sept 2014}





दर्द का मंजर है एहसास के करीब
पीर का समन्दर है प्यास के करीब
हमदम ! खामिंयों पे निगाह न कर
न शक खड़ा कर विश्वास के करीब।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९४ ) {Aug 2014}





मेरे. ज़ख्मों. को तुम. अब. और. हरा. मत. करना
अब किसी और से कभी, प्यार.-.वफ़ा मत करना
दम. तोड़ रहीं हमारी ज़िन्दगी की उखड़ी हुई साँसें
आखिरी वक्त में दिल तोड़ने की खता मत करना।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९३ } {Aug 2014}





जिस तमन्ना से आज हम तुमको देखा किये
या रब ये तमन्ना जीस्त भर यूँ ही कायम रहे।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९२ } {Aug 2014}





वो तुम्हारा हाथ हो या कि हवाओं की आहटॆं
मेरे दरवाजे पर अब कोई दस्तक नहीं होती।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७९१ ) {Aug 2014}





आग से खिला हूँ, फ़ूल से भी जला हूँ
चल रहा तन्हा, अकेले ही काफ़िला हूँ
ज़िन्दगी में गमों के ही फ़ूल पिरोये हैं
खारजारी राहों पर भी हँस कर चला हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Sunday, October 5, 2014

{ ७९० } {Aug 2014}





यही कदीम रिवाज है इस मोहब्बत की हाट का
यहाँ हुस्न हुआ है मालामाल आशिक हुए गरीब।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८९ } {July 2014}





मेरा सावन मुझपे पतझड़ सा बरसता है
तनहाइयों का मंजर भी खूब झलकता है
अमावस की ही रातें हैं अपनी ज़िन्दगी में
प्यार का सूरज भी अब कहाँ निकलता है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८८ } {July 2014}





हमको. कुछ न चाहिये. पर प्यार. तो मिले
किसी को अपना कहूँ ये अधिकार तो मिले
चाहता. है दिल. कि मैं भी कभी. रूठ. जाऊँ
पर. मुझे किसी का मान-मनुहार तो मिले।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८७ } {July 2014}





मुब्तदा उलझने बढ़ती रही रात भर
धार आँसुओं की बहती रही रात भर
गुम हो गया कहीं दिल का चैनों-सुकूँ
संगे-दिल की याद आती रही रात भर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Saturday, October 4, 2014

{ ७८६ } {July 2014}





रौशन कर दे जो मेरे बुझे चिराग को
तलाश उस आग की मुझे आज भी है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८५ } {July 2014}





भीड़ ही भीड़ है हर तरफ़ पर मैं तनहा हूँ
सभी अपने हैं पर उन अपनों में मैं कहाँ हूँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





{ ७८४ } {July 2014}






देख कर वो मुझको इथलाती मुस्काती है
वो मुझे मय के जाम पर जाम पिलाती है
मयखाना जिससे हुआ करता है रौशन
साकी की आँखों में जन्नत नज़र आती है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, October 3, 2014

{ ७८३ } {July 2014}





गमगीन हो दिल, गमजदा सूरत नहीं रखो
दिल में हो तमन्ना, कोई हसरत नहिं रखो
पराये गम. को भी. अपना. ही गम समझो
सेवा-बरदारी में कोई सियासत नहीं रखो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८२ } {June 2014}





ये मुस्कुराहटें ही तो मेरे चेहरे की बनी हैं नकाब
गौर से देखो बड़ा गहरा है दर्दे-दिल का समन्दर।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८१ } {June 2014}





बख्श देगा तेरे हर गुनाह को भी वो रसूल
अपनी करनी पर दो आँसू गिराओ तो सही।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७८० } {June 2014}





जी रहा हूँ या कि मर रहा हूँ
फ़ुस्न के हाथों सँवर रहा हूँ
कहने वाले क्या नहीं कहते
इश्क दामन में भर रहा हूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७९ } {June 2014}





तेरे बैगैर होगी ये ज़िन्दगी बसर नहीं
हर तरफ़ तुझे ढ़ूँढ़ा पर तेरी खबर नहीं
रोता है दिल मेरा और कहता जाता है
जैसा इधर हुआ है हाल वैसा उधर नहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७८ } {June 2014}





कब तक न छलकने दूँ सब्र का प्याला
तेरा हुस्नो-जमाल बड़ा ही कातिल है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Thursday, October 2, 2014

{ ७७७ } {June 2014}





नाराज है चाँद और चाँदनी भी है खफ़ा सी
क्यों होता है ये तमाशा मेरी ही ज़िन्दगी में।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७६ } {June 2014}







नाहक लोग कहते हैं शराब बुरी चीज है
साकी से पूछिये मैखाने में ही तहजीब है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७५ } {June 2014}





कठिन डगर में हमसफ़र होते हुए भी
अकेले हैं हम साथ रहबर होते हुए भी
उनके इकरार आज भी आ जाते हैं याद
नजरों में बेहयाई के मँजर होते हुए भी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७४ } {June 2014}






बुझ चुकी है जलते चिरागों की ज़िन्दगी
लौट कर न आयेगी सहर की वो ताजगी
सिलसुले तो जुड़े हैं धड़कनों से अब भी
पर बुझ न सकेगी अब होठों की तिश्नगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७३ } {May 2014}





तू कुदरत का करिश्मा
तुझमे खुदा का नूर है
तू किस्मत की है धनी
हुस्न पाया भरपूर है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

{ ७७२ } {May 2014}





जब नफ़रतों के रास्ते गुजरेगी ज़िन्दगी
हर कदम हम सबको अखरेगी ज़िन्दगी
चमन में महकाओं मोहब्बत की खुश्बू
खुश्बु-ए-गुल से खुद सँवरेगी ज़िन्दगी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल