मुरझाये हुए. तेरे तन-मन में फ़िर. से ऋतु बहार. आ जायेगी
जरा अपने मन-उपवन. को सींचों सारी तस्वीर बदल जायेगी
यादों की विरह अग्नि में अब और न झुलसाओ अपना यौवन
दर्द तुम्हारा बनकर स्याही, विरह की नई रूबाई लिख जायेगी।।
तुम्हारी मधुर याद के घन आ घिरे नयन अब बरसात बन कर बरसते
अधर प्यार की प्यास से जल रहे हैं तप्त ग्रीष्म की पवन सा झुलसते
सुना कर मधुर तान मधुवन जगाकर सपने सजाकर कहाँ छुप गये हो
तुम्हारे सुघर रूप की झलक देखने को तृषित नयन हैं अभी भी तरसते।।
कभी अलसाई सी लगती कभी सकुचाई सी लगती हो
कभी हृदय की दबी पीर से तुम उकताई सी लगती हो
कभी मौन हो जाती हो तो कभी हँसती और मुस्काती
कभी व्याकुल मन की पीड़ा से अकुलाई सी लगती हो।।
हैवानों के जमघट में ढूँढ़ रहा इन्सानों को
सन्नाटों के मरघट में ढूँढ़ रहा मस्तानों को
हरतरफ़ दफ़न हो रही हैं रूहें टूट रहे हैं दिल
देवगणों के संकट में पूज रहा शैतानों को।।
वह रूप-रस का भ्रमर नहीं मेरा सच्चा मीत है
मैं चातक हूँ उसका वह मेरा स्वाती का गीत है
पाँवों में सजती-बजती महावर और पायल सी
मेरे गद्य सम जीवन का वो सुगम सँगीत है।।
कभी. धूप. में कभी. छाँव. में मन. के ठौर निराले देखे
कभी आस. में कभी प्यास में मन के बौर निराले देखे
वश न चले मन. के पँखों. पर जाने कहाँ-कहाँ ले जाये
कभी अगन में कभी सपन में मन के दौर निराले देखे।।
कल जहाँ खिला था आँखों में प्यार का मधुमास
आज वहीं पर हम लिख रहे हैं हिज्र का इतिहास
दहलीज की हर एक आहट चौंका जाती मुझको
जाने और कितना बाकी है ज़िन्दगी में वनवास।।
गमों. के ऊपर. मुस्कुराहट. की चादर. ओढ़ लो
भावनाओं. की नाव. मनन. के तट को मोड़ लो
कामनाओं के वन में हिरण से भटकते मन को
रब की इबादत. के रँग-बिरँगे. गुलों से जोड़ लो।।
गमगीन दिलों के ज़ख्मों को सहलाया जाये
आओ चमन से रूठी बहारों को मनाया जाये
टकरा के कहीं चूर-चूर न हो जायें ये आइने
आओ कि इन पत्थरों को फ़ूल बनाया जाये।।