Monday, June 29, 2015

{९१२} {April 2015}





हँस-हँस के जी रहा हूँ मगर जरा मेरे दिल से पूछो
कैसे ढ़ो रहा हूँ वो गमों-सितम जो अपनों ने दिये हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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