पल्लव
Sunday, December 29, 2013
{ ७११ } {Dec 2013}
माथे पर तिरछी रेखायें अन्तर में नाद घनेरे हैं
अनसुलझे हैं प्रश्न मन में द्वन्दो ने डाले डेरे हैं
मधुवन में काँटे ही काँटे अँग-अँग छिला करता
अपना कहने वाले अपने हो गये अब तेरे-मेरे है।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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