पल्लव
Sunday, September 28, 2014
{ ७६२ } {April 2014}
ओ. मनमीत, मेरे मन - मन्दिर. में. रह. कर
दूर. न हो जाना. तुम. मुझसे कभी बिछुड़कर
मेरे. दिल की बस. एक तुम ही तो धड़कन हो
आओ प्रीत बढ़ायेंअधरों में अधरों को रखकर।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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