पल्लव
Tuesday, September 30, 2014
{ ७६४ } {April 2014}
सुख तो एक छलावा भर जैसे
मरुथल में हो आभासित जल
जितना भाग रहे है पीछे उसके
उतना ही वो जाता आगे निकल।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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