Tuesday, September 30, 2014

{ ७६३ } {April 2014}





लब थरथरा रहे थे साँसें उठती गिरती थीं
पढ़ रहे थे आयतें हम एक दूजे की आँखों से।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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