Saturday, November 1, 2014

{ ८२५ } {Oct 2014}






किसी तरह की छाँव हमें मयस्सर नहीं
छतें टूटी पड़ी हैं, शज़र भी सूखे खड़ॆ हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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