Wednesday, December 28, 2022

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बिन पलक झपके चकोरी सी तकती है मुझे 
अपनी पलकों पर मुझे अब सजा भी ले तू। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




थरथराते होंठ मेरे न कुछ कहें न ही कह पायें 
बस सह लेता हूँ जो मिलती अपनों से वेदनाएं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




अब मेरा अपनापन भी फरेब लगता तुम्हें 
कुछ तो प्यार को समझो कि ज़िन्दगी कटे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




तेरी उलफ़त ने मुझको बस ग़म ही ग़म दिए 
तुझसे दिल लगाने का ये अच्छा इनाम पाया है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




मुझसे बेवजह पूछते हो तुम वफ़ा के मायने 
मैं तो तुम्हें हाथों की लकीरों में बसा चुका हूँ। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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