बिन पलक झपके चकोरी सी तकती है मुझे
अपनी पलकों पर मुझे अब सजा भी ले तू।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
थरथराते होंठ मेरे न कुछ कहें न ही कह पायें
बस सह लेता हूँ जो मिलती अपनों से वेदनाएं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अब मेरा अपनापन भी फरेब लगता तुम्हें
कुछ तो प्यार को समझो कि ज़िन्दगी कटे।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
तेरी उलफ़त ने मुझको बस ग़म ही ग़म दिए
तुझसे दिल लगाने का ये अच्छा इनाम पाया है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
मुझसे बेवजह पूछते हो तुम वफ़ा के मायने
मैं तो तुम्हें हाथों की लकीरों में बसा चुका हूँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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