लोग भी क्या से क्या न जाने हो गये
कल तक जो अपने थे बेगाने हो गये।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
तुझसे मिलता हूँ तो खामोश सा हो जाता हूँ
पर ऐ ज़िन्दगी तुझसे सवालात कई करने हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कुछ न कह कर सब कहा तुमसे
न रही कोई गिला-शिकवा तुमसे
शायद लकीरों की कोई साजिश है
जो रख रही है मुझको जुदा तुमसे।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जिनकी बन्दूकें चलें दूसरों के काँधों से
उनकी खुद लड़ने की औकात नहीं होती।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
हयाते-मोहब्बत शायद मुझसे रूठ गई है
ज़िन्दगी की खामोशीयाँ अब सिमटती नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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