Thursday, December 8, 2022

{९८९}




लोग भी क्या से क्या न जाने हो गये 
कल तक जो अपने थे बेगाने हो गये। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





तुझसे मिलता हूँ तो खामोश सा हो जाता हूँ 
पर ऐ ज़िन्दगी तुझसे सवालात कई करने हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





कुछ न कह कर सब कहा तुमसे 
न रही कोई गिला-शिकवा तुमसे 
शायद लकीरों की कोई साजिश है 
जो रख रही है मुझको जुदा तुमसे।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





जिनकी बन्दूकें चलें दूसरों के काँधों से 
उनकी खुद लड़ने की औकात नहीं होती। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





हयाते-मोहब्बत शायद मुझसे रूठ गई है 
ज़िन्दगी की खामोशीयाँ अब सिमटती नहीं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

No comments:

Post a Comment