Friday, February 27, 2015

{ ८७५ } {Feb 2015}





सपने भी टूट-टूट जाते हैं कारवाँ भी बिखर-बिखर जाता है
गुरूर जग सिर चढ़ कर बोलता है तब यही हादसा होता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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