Saturday, January 21, 2023

{१००५ }




राह तलाश रहा हूँ खुद से खुद की
हम अपने काफ़िले से बिछड़े हुए हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





खो कर हँसीं लम्हों को गुजारा कैसे करूँ
दिखे न तू कहीं मुझे तो इशारा कैसे करूँ
अपना हर अश्क छुपाया है नजरों से तेरी
सितम अपने जज़्बात पे गवारा कैसे करूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





अब न रह गया अदब से रिश्ता
अब न रह गयी मेहमाननवाजी
अब नहीं दिखता प्यार-मोहब्बत
हर तरफ़ फैल गयी चालबाजी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





पढ़ सको अगर तो कभी तुम मुझको पढ़ो
मेरे गमगीन चेहरे पे लिखे हरफ़ों को पढ़ो
रोज पढ़ती हो तुम सीधी लिखी लकीरों को
हो सके तो मेरी उलझी तकदीरों को पढ़ो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





लहरों की बुलन्द आवाज कहती है
समन्दर दो किनारों को जोड़ता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल






Saturday, January 14, 2023

{१००४}




चाहता हूँ कभी मुझसे मेरी मुलाकात हो
हाल पूँछू अपने, कुछ दर्द अपने दुलराऊँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




तुम मेरे कुछ नहीं लगते मगर जाने-हयात
दिल की हर धड़कन में बसे तुम ही तुम हो।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




छिड़ी एक जंग खुद को लेकर खुद के भीतर
खुद में उलझा हूँ किसी और को क्या सुलझाऊँ।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




दे दे तू अपने आगोश की तमाजत मुझको
कि सर्द आहें मेरा दामन-ए-जिगर चीरती हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

(तमाजत = गर्माहट)




उड़ रहा मोहब्बत का परिंदा आसमान में
हमारा आशियाँ आज फिर से निखर गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल




हम न कह सकते थे किसी से अपने दिल की बात
अब सुखन की आड़ में सब कुछ कहना आ गया।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

Friday, January 13, 2023

{१००३}



न हुआ दर्द कभी गैरों के चुबहोए खंजर से 
हम अपनों के फेंके पत्थरों से चोट खाये हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


 

कितने मासूम होते हैं गुलशन में खिले हुए ये महकते फ़ूल 
चमन में मँडराते हर भँवरे को अपना दोस्त समझ लेते हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




वो दोस्त है या कि दोस्त नुमा दुश्मन है 
रहगुजर में हमारी जो पत्थर सजा रहा है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




दर्दे-दिल सहते-सहते कितना जमाना गुजर गया 
पर समझ न पाये अभी तक उसकी रुसवाई को। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


 


उसके  खयालों की  गठरी  हमेशा पास रही 
फिर न जाने क्यों ज़िन्दगी हमेशा उदास रही 
शायद  वो मेरी  आवाज को सुन न सका हो 
पर,  उसको  आवाज  देती मेरी  साँस  रही।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


 

पढ़ना चाहता था मैं उसके हुस्न की इबारत को 
पर उसके मद भरे नयनों में उलझ कर रह गया। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Thursday, January 12, 2023

{१००२}



बेहया हो गईं हैं फ़ितरतें जब उनकी 
उनसे निस्बत ही न रहे तो अच्छा है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



खुद से  उलफ़त  जो कर नहीं सकता 
वो किसी को मोहब्बत दे नहीं सकता। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



बेवजह ही अपनी निगाहों को यूँ परीशां करते हो 
खुदगर्ज जमाने में कोई अपना नहीं मिलने वाला। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



जो गाते थे समवेत स्वरों में दिल की मीठी थापों पर 
आज वही कर गये अँधियारा उजली-उजली रातों पर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



जिन्दगी के सवाल को सहज न जान 
जिन्दगी का हर जवाब मुश्किल है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Wednesday, January 11, 2023

{१००१}



खाक में मिल गए टूट कर आँख से आँसू 
लहूलुहान पड़ा है जब से जमीं पर सूरज। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



बस इसी उम्मीद में  गुजर गई उम्र सारी 
कि इक रोज तो सूरज से उजियारा होगा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



कोई खुशी मेरे घर तक आ ही न सकी 
संगसार राहों में शायद भटक गई होगी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



साहिल भी देखो समन्दर हो गया 
हाल उसका भी बदतर हो गया 
क्या बुझेगी मेरी तिशनगी कभी 
ये ख्वाब ही मेरा बंजर हो गया।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल  



जिस राह में न हों कोई दुश्वारियाँ 
उस रहगुजर से मेरा क्या वास्ता। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Tuesday, January 10, 2023

{१०००}



जबसे मरघटों ने कनारों पर कब्जा कर लिया 
साहिल पर तड़प रहा है बेघर हुआ सन्नाटा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



दरमियाँ यों न फासले रखो 
काश ऐसे भी सिलसिले रखो 
अपने इस उदास आँगन में 
फूल उम्मीद के कहिले रखो।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल


 

दरमियाँ हैं दूरियाँ मगर दिल नजदीक हैं 
खामोशीयों के बीच सदा उसकी आ रही। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



अथाह सागर प्रेम का, थाह न पावे कोय। 
बिन लालच तू प्रेम कर, मन भर आनन्द होय।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



किससे कहूँ दर्दे-दिल, किससे करूँ मैं शिकायतें 
ज़िन्दगी में हर कदम पर गैरों की महफ़िल सजी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

Monday, January 9, 2023

{९९९}



सोई हैं  आँखें  जागते  सपनों के साथ 
लिपटी हैं ख्वाहिशें चँद साँसों के साथ 
सन्नाटों का शोर गूंज रहा है  हर तरफ 
बीत रहे लम्हे नित नए सदमों के साथ।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



चलो लौट चलें सुखन की दुनिया में 
वहाँ कुछ तो चैनों-आराम मिलेगा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



हम हँस-हँस कर अपने ग़म छुपाते हैं 
तनहा होते हैं तो रो लेते हैं जी भर कर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



कुछ पल तो हँस लें कहकहे लगा लें 
यूँ ही जीते जाना कोई ज़िन्दगी नहीं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



ज़िन्दगी मैखाना है मदहोश होकर जिये जाइये 
जीस्त की दुश्वारियाँ जाम समझ कर पिये जाइये। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल