Friday, January 6, 2023

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कुर्बानियाँ हमारी सब हैं भुला बैठे 
जुबां पे सबकी हमारी शैतानियाँ हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 




हुस्न भी है उनका कातिल और अदा भी है कातिल 
हुस्न में शोख अदा भरकर वो खुद से झिझक रहे हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



ज़िन्दगी में जाने कैसा ठहराव आया 
कि खामोशियाँ भी दर्द से चीखती हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



अश्कों से जख्मों को धोकर आँखें ढूँढ़ती हैं 
ज़िन्दगी में क्या पाया है और क्या खोया है। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



इश्क के महमहाते गुलशन को बेजार न कर
अपने ही नाखूनों से नया ज़ख्म तैयार न कर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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