Saturday, January 21, 2023

{१००५ }




राह तलाश रहा हूँ खुद से खुद की
हम अपने काफ़िले से बिछड़े हुए हैं।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





खो कर हँसीं लम्हों को गुजारा कैसे करूँ
दिखे न तू कहीं मुझे तो इशारा कैसे करूँ
अपना हर अश्क छुपाया है नजरों से तेरी
सितम अपने जज़्बात पे गवारा कैसे करूँ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





अब न रह गया अदब से रिश्ता
अब न रह गयी मेहमाननवाजी
अब नहीं दिखता प्यार-मोहब्बत
हर तरफ़ फैल गयी चालबाजी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





पढ़ सको अगर तो कभी तुम मुझको पढ़ो
मेरे गमगीन चेहरे पे लिखे हरफ़ों को पढ़ो
रोज पढ़ती हो तुम सीधी लिखी लकीरों को
हो सके तो मेरी उलझी तकदीरों को पढ़ो।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल





लहरों की बुलन्द आवाज कहती है
समन्दर दो किनारों को जोड़ता है।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल






No comments:

Post a Comment