हर तरफ फैला हुआ है ऐसा काला साया
कि अब अपने साये से भी डर लगने लगा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
मुसाफिर ही मुसाफिर हैं हर तरफ
मगर हर शख्स तनहा जा रहा है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
लग जायेंगी अभी कई और सदियाँ
इस दौर के इंसा को इंसा बनाने में।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कभी लाता नहीं ज़बाँ पर हालात का शिकवा
बस खुद को सुपुर्दे-ग़म कर दिया करता हूँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बहुत संगसार है रास्ता मेरे घर का मानता हूँ
रख दूँगा हथेली पाँव के नीचे तुम आओ तो सही।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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