खाक में मिल गए टूट कर आँख से आँसू
लहूलुहान पड़ा है जब से जमीं पर सूरज।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बस इसी उम्मीद में गुजर गई उम्र सारी
कि इक रोज तो सूरज से उजियारा होगा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कोई खुशी मेरे घर तक आ ही न सकी
संगसार राहों में शायद भटक गई होगी।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
साहिल भी देखो समन्दर हो गया
हाल उसका भी बदतर हो गया
क्या बुझेगी मेरी तिशनगी कभी
ये ख्वाब ही मेरा बंजर हो गया।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जिस राह में न हों कोई दुश्वारियाँ
उस रहगुजर से मेरा क्या वास्ता।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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