Wednesday, January 11, 2023

{१००१}



खाक में मिल गए टूट कर आँख से आँसू 
लहूलुहान पड़ा है जब से जमीं पर सूरज। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



बस इसी उम्मीद में  गुजर गई उम्र सारी 
कि इक रोज तो सूरज से उजियारा होगा। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल



कोई खुशी मेरे घर तक आ ही न सकी 
संगसार राहों में शायद भटक गई होगी। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 



साहिल भी देखो समन्दर हो गया 
हाल उसका भी बदतर हो गया 
क्या बुझेगी मेरी तिशनगी कभी 
ये ख्वाब ही मेरा बंजर हो गया।। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल  



जिस राह में न हों कोई दुश्वारियाँ 
उस रहगुजर से मेरा क्या वास्ता। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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