बेहया हो गईं हैं फ़ितरतें जब उनकी
उनसे निस्बत ही न रहे तो अच्छा है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
खुद से उलफ़त जो कर नहीं सकता
वो किसी को मोहब्बत दे नहीं सकता।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बेवजह ही अपनी निगाहों को यूँ परीशां करते हो
खुदगर्ज जमाने में कोई अपना नहीं मिलने वाला।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जो गाते थे समवेत स्वरों में दिल की मीठी थापों पर
आज वही कर गये अँधियारा उजली-उजली रातों पर।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जिन्दगी के सवाल को सहज न जान
जिन्दगी का हर जवाब मुश्किल है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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