चाहता हूँ कभी मुझसे मेरी मुलाकात हो
हाल पूँछू अपने, कुछ दर्द अपने दुलराऊँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
तुम मेरे कुछ नहीं लगते मगर जाने-हयात
दिल की हर धड़कन में बसे तुम ही तुम हो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
छिड़ी एक जंग खुद को लेकर खुद के भीतर
खुद में उलझा हूँ किसी और को क्या सुलझाऊँ।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दे दे तू अपने आगोश की तमाजत मुझको
कि सर्द आहें मेरा दामन-ए-जिगर चीरती हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
(तमाजत = गर्माहट)
उड़ रहा मोहब्बत का परिंदा आसमान में
हमारा आशियाँ आज फिर से निखर गया।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
हम न कह सकते थे किसी से अपने दिल की बात
अब सुखन की आड़ में सब कुछ कहना आ गया।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment