पल्लव
Tuesday, April 3, 2012
{ २२८ } {April 2012}
अब तो खत्म ही होती जा रही है ज़िन्दगी
पर मौत को भी तरसा रही है ज़िन्दगी
ये मौत तो ज़िन्दगी का ही दूसरा नाम है
फ़िर क्यों ज़िन्दगी को भा रही है ज़िन्दगी।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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