Thursday, April 19, 2012

{ २४६ } {April 2012}





बिफ़रे जब-जब रूप का समन्दर
बोलो कैसे रह पाऊँ हद के अन्दर
मै ठहरा हुस्न-ओ-नूर का आशिक
मत समझो मुझको मस्त कलन्दर।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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