Friday, November 1, 2013

{ ७०१ } {Nov 2013}





वह रूप-रस का भ्रमर नहीं मेरा सच्चा मीत है
मैं चातक हूँ उसका वह मेरा स्वाती का गीत है
पाँवों में सजती-बजती महावर और पायल सी
मेरे गद्य सम जीवन का वो सुगम सँगीत है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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