Friday, November 1, 2013

{ ७०० } {Oct 2013}





कभी. धूप. में कभी. छाँव. में मन. के ठौर निराले देखे
कभी आस. में कभी प्यास में मन के बौर निराले देखे
वश न चले मन. के पँखों. पर जाने कहाँ-कहाँ ले जाये
कभी अगन में कभी सपन में मन के दौर निराले देखे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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