तुम्हारी मधुर याद के घन आ घिरे नयन अब बरसात बन कर बरसते
अधर प्यार की प्यास से जल रहे हैं तप्त ग्रीष्म की पवन सा झुलसते
सुना कर मधुर तान मधुवन जगाकर सपने सजाकर कहाँ छुप गये हो
तुम्हारे सुघर रूप की झलक देखने को तृषित नयन हैं अभी भी तरसते।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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