Friday, January 31, 2014

{ ७२५ } {Jan 2014}





सागर सी हो गई नदी बढ़कर
मँझधार में समाये किनारे हैं
कश्ती भँवर से लड़ रही है पर
सहारे सब हो चुके बे सहारे हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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