Friday, January 31, 2014

{ ७३२ } {Jan 2014}





मैं आकुल हृदय, हूँ वेदना का अनन्य पुजारी
आँसुओं की ही आरती हमने निश-दिन उतारी
व्यथित मन को आज बुझे से शब्द भा रहे हैं
काँपते शब्द-मँदिर की मूरत हमने यूँ सँवारी।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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