चारों तरफ तेज हवाओं से घिरा हूँ
इन आँधियों मे दीपक जलाऊँ कैसे।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दरीचों से झाँक कर देख ली रँगीन दुनिया
मेरे दिल में झाँक कर कभी दर्द भी देखो।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
पहले अपना ही घर था मगर अब लगता है
अपने ही घर मे हो गए जैसे पराए से हम।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़िन्दगी में दर्द सहते - सहते
हम ज़िन्दगी जीना सीख गए।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़ख्म कुछ ऐसे मिले हैं अपनों से
अपने साए से भी अब डर लगता है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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