Sunday, November 20, 2022

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शब्दों के बाण चले मुझ पर इस कदर 
हर ज़ख्म का निशान दिखता दिल पर। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





इश्क इबादत है जनाब व्यापार नहीं 
नेमत मिले तुरन्त रहती उधार नहीं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





हम तो तूफ़ानों से भी बच कर आ गये 
लोग जाने कैसे साहिल पे डूब जाते हैं। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





यहाँ तू भी मेहमान मैं भी मेहमान 
यहाँ पर तेरा क्या और मेरा क्या। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 





गूँजती आवाजों को ये सन्नाटे निगल न जायें 
रह - रह  कर  यही  खौफ़  सताता है मुझे। 

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल 

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