शब्दों के बाण चले मुझ पर इस कदर
हर ज़ख्म का निशान दिखता दिल पर।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
इश्क इबादत है जनाब व्यापार नहीं
नेमत मिले तुरन्त रहती उधार नहीं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
हम तो तूफ़ानों से भी बच कर आ गये
लोग जाने कैसे साहिल पे डूब जाते हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
यहाँ तू भी मेहमान मैं भी मेहमान
यहाँ पर तेरा क्या और मेरा क्या।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
गूँजती आवाजों को ये सन्नाटे निगल न जायें
रह - रह कर यही खौफ़ सताता है मुझे।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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