मैं हूँ एक ठहरी हुई खामोशी जिसकी कोई आवाज नहीं
मैं वो अफ़साना जिसका कोई अंजाम नहीं, आगाज़ नहीं
जर्जर पिंजर सँग अब बैठा हूँ टूटती साँसों का हुजूम लिए
पस्त हो गये हौसले सारे अब बची कूवते - परवाज़ नहीं।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बिछी रह गईं मेरी आँखें पर तुम नहीं आये
यादों में ही खो गईं यादें पर तुम नहीं आये
टुकड़े-टुकड़े हो कर अब चुभ रही सीने में
नम हुईं यादों की आँखें पर तुम नहीं आये।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
दरिया तो चाहता है कि बुझा दे सबकी प्यास
मगर कोई प्यासा पास उसके आए तो सही।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
वो बुलंदियाँ भी किस काम की जनाब
इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जाये।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
तुम को अपनी आँखों में तस्वीर की तरह मैं भी सजा लूँ
दिल में धड़कन की तरह तुम भी मुझे बसाओ तो सही।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अब कर लिया है तीरगी से समझौता
खयाल छोड़ दिया चराग जलाने का।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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