खूब हो रहा हो जिससे नफ़रत का सिलसिला
मोहब्बत कर के देखो नया किरदार दिखेगा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
सच के साए में झूठ पला करता है
सच्चाई कब किसी से बर्दाश्त हुई।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
जागते हैं हम रात को बस इसी वास्ते
वो ख्वाबों में आकर कहीं लौट न जाए।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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