मुस्कुराहटों के लिये ये लब तरस गये
अब खामोशीयाँ ही दर्द से कराहती हैं।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
ज़िन्दगी ने अनगिनत घाव दिये दिल को
वक्त गुजरा पर लहू अभी भी बह रहा।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
न करो कोशिश मुझ जैसी
बासी लकीर को हटाने की
मैं उतना ही याद आऊँगा
मुझे जितना तुम मिटाओगे।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
बाँध देती है उम्र मस्ती को सीमाओं में
काश कि उम्र बचपन में ही ठहर जाती।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
कुछ हँसीं लम्हे चुरा लेने को जी चाहता है
तुमसे तुम्हीं को चुरा लेने को जी चाहता है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
अपनों मे हो गया जब गैर हूँ तब गैरों की क्या दरकार
अपनों को अपनों कि न जरूरत न अपनों से सरोकार।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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