पल्लव
Tuesday, December 6, 2011
{ ९९ } {Dec 2011}
फ़ागुनी भोर की तरह मुखडा
भाल में रोशनी चमकती है
जब भी देखूँ तुम्हारे होठों को
ज़िन्दगी की सुरा छलकती है ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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