Thursday, December 22, 2011

{ ११५ } {Dec 2011}







लफ़्ज़ ज़ुबाँ पर हैं आते-आते
जाने खों रुक-रुक कर ठहरे
मौन मधुर स्वर किसे सुनाऊँ
जब रिश्ते इसके तुमसे गहरे ।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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