पल्लव
Thursday, May 3, 2012
{ २४७ } {May 2012}
पर्वत पर बहते झरनों को इन सूखे मैदानों में आ जाने दो
खारे सागर में घुलने से पहले बादल बन प्यास बुझाने दो
कैसे सुनी - अनसुनी कर दूँ इन प्यासी, वीरान पुकारों की
मझधारों से कटती लहरों को तट पर जा कर खो जाने दो।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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