Monday, January 21, 2013

{ ४६६ } {Jan 2013}





आँखों की पुतली सा हम रखते थे जिनको
आज उन्ही पुतलों से ही फ़िर धोखा खाया
हम भाई-भाई कह कर दुलराते थे जिनको
उनकी डसने की फ़ितरत अब समझ पाया।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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