Sunday, March 30, 2014

{७४३} {March 2014}





दुख-दर्द का तप्त सूर्य हृदय की गोद में जलता रहा
डबडबाई आँखें, वेदना का शब्द अधरों में पलता रहा
हम जानते हैं आखिरी अंजाम अपनी मोहब्बत का
जीस्त भर हुस्न हमको बस इसी तरह छलता रहा।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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