पल्लव
Monday, March 31, 2014
{ ७४९ } {March 2014}
आँधियाँ चलने को हैं, अब जरा तुम सँभल जाओ
फ़िज़ा बदलने को है, अब जरा तुम सँभल जाओ
जिनको समझ रहे हो तुम तिनका, ओ जड़ मनुज
व्योम में चढ़ने को हैं, अब जरा तुम सँभल जाओ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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