Monday, March 31, 2014

{ ७४७ } {March 2014}





सुख पाने जाते जब भी हम दुख की गठरी ले आते हैं
और उसे काँधे पर डाले-डाले जीवन भर ढ़ोते जाते हैं
बने चतुर पर जान न पाये निज मन की ही गति को
सुख पाने की अभिलाषा में दर-दर की ठोकर खाते हैं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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