पल्लव
Tuesday, August 20, 2013
{ ६६४ } {Aug 2013}
दर-दर भटक रही तरुणाई, पीत वसन ओढ़े-लहराये
भूखे पेट भटकता भारत, यौवन हाट-हाट बिक जाये
कान्ति-हीन हो गया मुखौटा, पीड़ा संगिनी बन आई
भावों का असफ़ल व्यापारी, कैसे गीत प्यार के गाये।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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