पल्लव
Tuesday, August 20, 2013
{ ६६६ } {Aug 2013}
क्या ऐसा मोहिनी सोनल रूप कहीं आँखों ने है देखा
मनोरमा के नख-शिख का भूगोल रहा कैसे अनदेखा
रक्ताभ कपोल पर नारँगी धूप सम चहकती चितवन
कौन लिख पायेगा बोलो इस रूपमनी रूपसी का लेखा।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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