Tuesday, July 30, 2013

{ ६५३ } {July 2013}





बह. रही हवा. गुमसुम, शबनम. फ़िर रो रही
सन्नाटों. की आवाजों. में भोर. कहीं. खो रही
चिलचिलाती. धूप मे निष्प्राण. खड़ी. प्रतीक्षा
सुधियों की साँसें चाँदनी के तिमिर में रो रहीं।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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