Wednesday, December 17, 2014

{ ८३६ } {Nov 2014}





अपनों ने किया जब भी किनारा है
अश्कों को पीकर ही वक्त गुजारा है
फ़ूलों के बदले राह में बिछे हैं काँटे
मिलता देखने को ये कैसा नजारा है।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment