पल्लव
Sunday, December 14, 2014
{ ८२९ } {Nov 2014}
कश्तियाँ टूट कर बिखर गईं हैं सारी
अब समन्दर का ही सहारा रह गया है।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment