पल्लव
Saturday, January 21, 2012
{ १४१ } {Jan 2012}
मुस्कुराते रहे हैं हम रोते हुए
तेरी नजर के सामने होते हुए
आज फ़िर से रात पकडी गई
तेरी उलझी ज़ुल्फ़ों में सोते हुए ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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