पल्लव
Wednesday, January 4, 2012
{ १२६ } {Jan 2012}
मेरे कितने करीब आ गई साकी
फ़िर भी तो है प्यास अभी बाकी
प्यास किस-किस की हरे आखिर
भीड है भँवरों की और फ़ूल एकाकी ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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