पल्लव
Friday, January 13, 2012
{ १३६ } {Jan 2012}
ये अब्रे-बाराँ मचलते हैं दरिया से मिलने को
जैसे दरिया मचले उस सागर से मिलने को
ये इश्क भी ऐसे ही करता आशिक को दीवाना
क्षण भर रह न पाते मचले फ़िरते मिलने को ।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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