पल्लव
Monday, March 26, 2012
{ २२४ } {March 2012}
सूरज नजर आते ही क्यो मेरी रात हो गई
बाजी शुरू हुई ही थी कि मेरी मात हो गई
समझी न जीस्त भी यूँ मेरे मिट जाने को
मौत भी पूछती फ़िरे ये क्या बात हो गई।।
-- गोपाल कृष्ण शुक्ल
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