Monday, November 12, 2012

{ ३९७ } {Nov 2012}





तुम बिन सब सूना-सूना, लफ़्ज़ भी हैं बिखरे-बिखरे
लाओ कोई प्यार का मरहम, जख्म भी हैं उभरे-उभरे
तेरे प्यार की मधुर धुन को, हम कब से तरस रहे हैं
मधुर गीत बना उनको, जो पल साथ-साथ हैं गुजरे।।

-- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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